मानव जीवन भगवत् कृपा से प्राप्त होता है प्राणी 84 लाख योनियों में भटकने के बाद में भगवद् अनुग्रह से मानव जीवन प्राप्त करता है। मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवत् प्राप्ति करना, अपना कल्याण करना और जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना है। इसे प्राप्त करने के लिए परमात्म प्रभु ने बल, बुद्धि, विवेक और सामर्थ्य भी मानव को प्रदान किया है।अन्य किसी भी योनि में सामर्थ्य नहीं है।अन्य योनियाँ तो केवल भोग योनियाँ है जहाँ केवल भोग भोगा जाता है।मानव मात्र को क्षमता प्राप्त है कि वह सेवा, दान, परोपकार आराधना आदि सब पुण्यप्रद कार्यों को सम्पन्न कर अपनी साधना से प्रभु की कृपा प्राप्त कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। उपरोक्त उद्देश्य की पूर्ति एवं समाजोद्धार के लिए भगवान ने महत्ती कृपा करके पूज्य महाराजश्री को पथमेड़ा की पुण्य भूमि पर हमारे ही समाज के भक्ति व सेवा परायण परिवार में जन्म प्रदान किया है।आपश्री 15 वर्ष की आयु में ही अपने सद्गुरु की शरण में आ गए थे। सद्गुरुदेव की वात्सल्यमयी कृपा-करुणा से बाल मन पर भक्ति वह सेवा के अमिट संस्कार स्थापित हो गये। इसी के परिणाम स्वरूप आपश्री ने पूज्या गोमाता की सेवा में अपने जीवन के 20 वर्ष व्यतीत किये। पूज्या गोमाता की सेवा एवं सद्गुरुदेव की कृपा से आपश्री के मन में समाज सेवा का भाव आया। सद्गुरुदेव की आज्ञा लेकर सन् 2017 में दीपावली के पूर्व नवरात्रि के पावन पर्व पर समाज सेवा के पवित्र व कल्याणकारी कार्य का बीड़ा उठाया है। जो आज हमारे सामने है।